भुइंया के भगवान बर एक अऊ भागीरथ चाही

ये संसार म भुइंया के भगवान के पूजा अगर होथे त वो देस हाबय भारत। जहां भुइंया ल महतारी अऊ किसान ल ओखर लईका कहे जाथे। ये संसार म अन्न के पूरती करईया अन्नदाता किसान हे। हमन इहां उत्तम खेती,मध्यम बान(व्यापार),निकृष्ट चाकरी अऊ भीख निदान म बिसवास करईया मनखे अन। हमर सभ्यता संसकिरती म ’’अन्नदाता सुखी भवः’’ के अवधारणा पर बसे हावय। अन्नदाता याने अन्न उपजईया किसान के खातिर अभार प्रगट करेके हमर परमपरा सनातन काल ले चले आवथ हे। हमर छत्तीसगढ़ के किसान ह हरेली,भोजली,पोरा,छेरछेरा म अपन जो खुसी परगट करत आत रहिस हावय आज ये तिहार के परंपरा ल बनाये तो रखे हावय पर मन से तिहार ल मनाय नई पाथ हावय काबर?
हमर सभ्यता संसकृति अन्नदाता किसान के खातिर आदर अऊ कृतज्ञता के भाव रहिस तभे तो त्रेतायुग म मिथिला के राजा जनक अपन परजा के किसान के खातिर दुकाल के समय खुद नांगर धर के खेत ल जोते रहिस। ये होथे राजा जो परजा के दुख अऊ सुख के घरी म हरदम साथ देथे।पर आज के समय म हमर देस के निती नियंता मन हरित क्रांति अऊ कारपोरेट वैश्वीकरण ल अपना के सतयुग ले चले आथ ये सभ्यता अऊ संसकृति जेमा किसान के खातिर आभार परगट करके परंपरा अन्नदाता सुखी भव के भाव ल उलट के रख देहे हाबय अऊ अब ’’अन्नदाता दुखी भवः’’ के भावना चरितारथ होत दिखत हाबय। जब भुइंया के भगवान ही नई रही त कहां के अन्न ?
पहिली हमर किसान मन जैविक खेती करके अपन अऊ अपन परिवार बर ही अन्न उपजाथ रहिस कहे के मतलब ये हाबय कि अन्न ल बेचत नई रहिस। पर आज किसान ल हरित क्रांति अऊ कारपोरेट वैश्वीकरण ह बेवसाय करे बर मजबूर कर देहे हे। जेखर कारन से जादा फसल के उत्पादन बर हाईबिरीड बिजहा के उपयोग करथ हे। ये हाईबिरीड बिजहा के धान, गेंहू, तिल, सरसों, गन्ना, मटर, राहेर, अरसी अऊ कतको साग-सालन के पैदावार होइस त होईस असन नई होइस त किसान के मरना।
फसल के जादा पैदावार बढ़ाय बर रसायनिक खातू उहू बड़े कंपनी के अऊ बिजहा भी बड़े कंपनी के चाही। अऊ ये सब बर किसान ल करजा ले बर पड़त हे। अऊ फसल के पैदावार नई होईस त किसान करजा बोड़ी ल कईसे छूटय? दूनो कति ले किसान के ही मरना हे। एति कुआ वोति खाईं।
हरित क्रांति हरित क्रांति कही-कही के निजी कंपनी मन के खातू,बिजहा,कीटनाशक दवई,खरपतवार नासक दवई, गंगई नासक दवई अऊ न जाने कतका परकार के बिमारी बता बता के फसल ल बचाये अऊ जादा पैदावार होही कईके किसान के पईसा बड़े बड़े लोगन मन के खिसा म जाथ हाबय। अऊ किसान के हाथ कुछ नई आवथे। वो कईथे न किसान के हाथ दुच्छा। करजा -बोरी के कारण किसान ल अपन खेत खार ल बेचे बर पड़ जाथे। अऊ कहूं रद्दा नई सूझे त किसान अपन परान ल ले लेथे। ओखर जाये के बाद ओखर परिवार के दुख पीरा हरईया कोनो नइये।
पहली हर गांव म किसान ह अपन अपन खेत म धान, गहूं, मटर, बटुरा, राहेर, चना, सरसों, उरिद, कुसियार, तिल, तिवरा जइसे जैव बिबिधता वाले फसल ल लगाये रहत रहिस हाबय जेमा फलीदार पौधा के गांठ म पाये जाने वाला राइजोबियम जीवाणु ह वायुमण्डल के नाईट्रोजन के स्थीरिकरण करके माटी ल उपजाउ बनावय। अऊ घर के घुरूवा के खातू माटी ह खेत बर सोना म सुहागा के काम करत रहिस। जेखर कारन घर ह चाउर,दार,तेल अऊ किसीम किसीम के अन्न ले भरे रहय अऊ घर भर के मनखे मन ल पोस्टिक आहार मिलय। कोठी म धान ल भरे रहय पर आज बैपारिक मानसिकता के चलत ले कोठी घलो ह नंदावत हाबय। पर आज केवल अऊ केवल बेवसाय करके के खतिर किसान मन के ऑखि म जादा पैदावार के सपना दिखा के बड़े-बड़े कंपनी अपन जेब ल भरथ हावय अऊ भुंईया के भगवान के जेब ल खाली करत हाबय। रसायनिक खातू के परयोग से भुईंया ह पहिली ले जर गे हावय वोकर संगे-संग चाऊर,दार,साग-सालन,तिलहन मन भी जहर बन गे हे। जेला खाके मनखे मन के तन खलों जहरीला होत जात हे, जेखर कारन मनखेमन के सरीर म सक्कर के बिमारी,बलड पेसर,गूरदा के बिमारी,हार्ट अटेक, जईसे आनि-बानी के बिमारी ह पांव पसारथ हावय। अऊ अब सासन कईथे जैविक खातू के इस्तेमाल करव। नीम कोटेट यूरिया अपनावव। पर अब तो किसान के घर म न तो गरूवा-बछरू,बईला-भैइसा,छेरी-बोकरी हावय अऊ न तो घूरूवा हावय जेमा ले जैविक खातू-माटी ह निकलही।
आजकल बिजहा घलो अइसहना हाबय जंे आगू बछर बर नइ रखे सकन काबर के ये बिजहा ल हमन जेला हमन हायबिरीट कइके बिसाथन वो एकेच फसल बर काम आथे नइतो कभू-कभू फसल जामे कस नइ करे। बिजहा अनबिजहा हो जाथे जी त किसान के मरना। कंपनी के कोई गारंटी नइ। पहिली के जमाना म फसल म कोनो रोग-राइ नइ आत रहिस पर अब तो आनि-बानी के रोग-राइ अऊ आनि-बानी के ओखर बर दवाइ। सबेच बर पैइसा।
दूसर गोठ ये हावय के किसान मन के आरथिक दसा गिरे के सबले बड़े कारन ओखर फसल के सही दाम नइ मिलना ’ ऊॅंट के मुह म जीना ’ के बरोबर ये। कहे के मतलब ये हावय के ’आमदनी अठन्नी अऊ खरचा रूपैया’। जेतका आज के समय म फसल के लागत बैइठत हाबय चाहे खेत जोते बर टेक्टर के जरूरत होथे त डीजल के दाम दिनों-दिन बाढ़त हावय, बिजहा, दवाइ-पानी, चाहे भुतिआर के रोजी रहय, चाहे खातू-माटी के दाम होवय, चाहे मिसाइ सब किराया बाढ़त हाबय,ओतका घलऊ आमदनी नइ मिलथ हाबय। आमदनी नइ होय के कारन किसान मन ह खेती-किसानी ल बनाये रखे के कारन करजा लेहे बर पर जाथे अऊ करजा नइ छूटे सकय जेखर कारन किसान अंदर रे अंदर दुखी रइथे ओखर पीरा हरइया कोनो नइ दिखय। किसान ल अपन आत्मसमान बहुत प्यारा रइथे, जेखर कारन वोहा आत्महत्या के रद्दा ल अपनालेथे।
पिछु चालीस-पचास बछर ले किसान के फसल के दाम सालों-साल ओतकेच हावय अऊ यदि दाम बढ़थे त कुछ रूपया जो पूरय नइ। महंगाइ ह सौ गुना बाढ़त हावय अऊ दुसर कति सरकारी अधिकारी, करमचारी मन के बेतन म साल म दू घव महंगाइ भत्ता के साथ बढ़े बेतन मिलथ रइथे अऊ हर दस साल म नया-नया बेतनमान बनाये बन बेतन आयोग के गठन किये जाथे पर किसान के फसल लागत, वोकर नुकसानी के मुआवजा के निरधारन करे बर कोनो आयोग के गठन नइ होना ये चिंतन के बिसय हाबय। किसान चाहे कड़कत घाम रहय, चाहे भोंभरा तिपत रहय,चाहे गरजत-लऊकत रहय, चाहे कतको जाड़ पड़त रहय अपन करम ल नइ भुलाये मतलब के वो अन्नदाता हाबय अऊ अन्न उपजाय बर हर दुख-पीरा ल सहत मेहनथ करत आवथे, पर मेहनत के फल नइ मिलय जेखर कारन किसान के दसा ह बिगड़त जावथे। किसान घलो ल एक निसचित मानदेय देहे के नियम रहना चाही। जी तोड़ मेहनत करके के बाद आज किसान अऊ ओखर पिरवार बहुत दुखी जीनगी बितावत हाबय।
भारतीय अरथबेवस्था किरसी परधान हावय अउ किसान ये अरथबेवस्था के रीढ़ हे पर येही रीढ़ ह गलत नीति-निधारन के कारन टूटत हावय। इहां 80 परतिसत मनखेमन खेती -किसानी ले जुड़े हावय। भारत म अगर बाजार ह येतका बिकसीत हो हावय त वो खेती-किसानी के कारन हे। इहां बड़े-बड़े उद्योग धंधा के कच्चा माल खेती-किसानी ले ही मिलथे ।
देस के परधानमंत्री से लेके रास्ट्रपति, मुख्यमंत्री से ले के राज्यपाल अउ बिधायक, सांसद, सासकीय करमचारी, अधिकारी सबो के बेतन ह हर साल बाढ़त जावत हे बेतन के संग सबो ल गृह भाड़ा, यात्रा भत्ता, मेडिकल भत्ता, उकर लईकामन के पढ़ाई बर लोन के बेवस्था, कपड़ा धोय के भत्ता, टेलीफोन भत्ता, हर तीन या चार महिना म महंगाई भत्ता अउ हर दस बछर म नया बेतन आयोग बैठाये जाथे। आनी-बानी के भत्ता हावय पर किसान के फसल के समरथन मूल्य के संग कोनो परकार के भत्ता नहीं जुड़े रहय। का वो जो देस के अरथबेवस्था के रीढ़ हावय जेखर से भारत के बाजार ह टिके हावय वो ह मनखे नोहय। वोला कोनो बिमारी नई होवय जेखर ले वोला मेडिकल भत्ता नई मिलय। वोला महंगाई के कोई असर नई पड़य तेखर ले वोला महंगाई भता नई मिलय। वोला अपन घर के मरम्मत के जरूरत नई पड़य, जेखर ले ओला गृह भाड़ा नई मिलय। ओखर बेटी-बेटा मन ल अच्छा सिक्छा पाये के जरूरत नई हावय तेखर ले ओखर बेटी-बेटा बर बिना बियाज के लोन के जरूरत नई हे। किसान ल कपड़ा के जरूरत नई हे जेखर कारन वोला ओखर फसल के समरथन मूल्य धुलाई भत्ता नई मिलय। किसान ल अपन फसल ल बेचे जाये बर फसल मंडी त जाय बर रूपया-पेसा नई लागय काय जेखर कारन ओला या़त्रा भता देहे के कानो परावधान नई हे किसान ल अपन जरूरी काम बर कोनो करा संपरक करे के जरूरत घलो नई हावय जेखर कारन ओला टेलीफोन भता नई मिलय। बाकी दूसर मनखे मन ल जे ह नोकरी-चाकरी करत हावय या नेता -मंत्री हावय तेला बेतन के सगें-संग आनी बानी के भत्ता मिलथे । ये किसान के संग अनियाव नो ह त काय?
दूसर कती किसान मन ल 25-30 बछर पाछू फसल के जादा पैदावार बर रासायनिक खातू के परयोग करे बर प्रोत्साहित करे गे रहिस पर उही रासायनिक खातू ह आज किसान मन के दुसमन बन गे हावय। काबर के रासायनिक खातू ले भंुईंया जल गे हावय। जेखर से फसल के जड़ ह घलो बने नई जामय। भुंईया ल उपजाऊ बनाये वाला जीव गेंगरूआ घलो रासायनिक खातू अउ कीटनासक के कारन मरत जावत हे। कीटनासक के परयोग के कारन चिड़िया घलो जो किसान के एक परकार ले संगी हे तको ह खेत के कीड़ा-मकोड़ा म ल नई खावत हे अउ खावत हावय त उहू मन मर जावत हे। येमा फायदा काला होवत हावय अउ घाटा काला होवत हे ये सब जानत हावय।
किसान मन अपन करजा चुकावत-चुकावत थक जावथे काबर के जे सोच के वोहा करजा ले रइथे के फसल के पैदावार बने हो जाही त करजा ल चुकाता कर देबो पर यदि फसल के पैदावार नइ होवय तो वोकर आय के एक मात्र सहारा खेती हर हावय करजा नइ चुके सके अऊ उपर ले ओखर बियाज बाढ़त जाथे। किसान अपन आत्मसम्मान बचाये के खातिर आखिरी रास्ता आत्महत्या ल चुनथे । ये हमन सब जानथन कि आत्महत्या कायरता हावय पर किसान कायर नोहय । ये रद्दा ल किसान मजबूरी के कारन उठावत हे। किसान के आत्हतया के परमुख कारन अऊ ओला रोके के कुछ उपाय किये जा सकथ हाबय। जेखर से किसान के दसा सुधर सकथ हे। जब सरकार ह किसान मन के करजा माफ करके बर राजी हो जाथे त बैंक के बड़े अफसर मन ल आपत्ति हो जाथे अऊ उही बड़े अफसर मन देस नामी गिरामी कंपनी जेहा पहिली ले ही करजा में डूबे रईथे तेला हजारो करोड़ो रूपया पहिली करजा देथे अऊ करजा नइ छुटे सके त उंखर करजा ल माफ कर देथे काबर?
आत्महत्या के परमुख कारनः-
1. महंगाइ के अंधाधुंद बढ़ना
2. रसायनिक खातू के जादा इस्तेमाल से पैदावार म कमी।
3. फसल के बिजहा ह अनबिजहा हो जाना।
4. फसल के पैदावार,लागत के सही दाम नइ मिलना।
5. अच्छा पैदावार होय के बावजूद विदेस ले चाऊर,दार,तिलहन के आयात करना।
6. सिंचाइ के समुचित बयवस्था नइ होना।
7. घूसखोरी, भ्रसटाचार।
8. विकास के नाम पर किसान के खेत के अधिग्रहण।
9. प्राकृतिक आपदा के कारन फसल नुकसानी म करजा माफ नइ होना।
आत्हत्या रोके के उपायः-
1. महंगाइ पर रोक जरूरी।
2. जैविक खातू अऊ परांपरिक खेती ल बनाये रखे के जतन ।
3. देसी प्रजाति के बिजहा ल सुरक्षित रखे जाये।
4. फसल के पैदावार,लागत के सही दाम बर किसान आयोग के गठन किया जाये अऊ हर पांच साल म आंकलन कर किसान ल भी एक निसचित मासिक आय दिये जाये।
5. यदि देस म फसल के पैदावार बढ़िया होय हाबय त बिदेस ले किसी परकार के फसल के आया नइ करना चाहीै
6. किसान फसल बर सिंचाइ के समुचति सुविधा बर सासन के जवाबदेही तय किय जाये।
7. घूसखोरी अऊ भ्रसटाचार म पूरा परतिबंद लगाये जावय।
8. विकास के नाव म किसान के खेतीहर जमीन ल अधिग्रहन न किया जावे यदि जरूरी होवय त वाजिब मुआवजा दिया जाये।
9. प्राकृतिक आपदा के कारन फसल नुकसानी म किसान के करजा माफी होना चाही।
10. जी.एम.(जेनेटिक मोडिफाइ) फसल के बेवसायिक उत्पादन पर रोक लगाना चाही।

अभी हाल-फिलहाल म अन्नदाता मन महारास्ट्र अऊ दिल्ली म संसद तक 24 राज्य के किसान मन अपन वाजिब हक बर रैईली,आंदोलन करिस ओहा भुंइंया के भगवान के सहनसीलता के पराकास्टा ए। किसान मन ल ओखर हक जरूर मिलना चाही।
किसान रे किसान,
तोर पिरा हरइया कोनो नइ ए इहां मितान।
तोर दुख देख के मोर करेजा होवथे छलनी,
तय हाबस भुइंया के भगवान,
तोर गोहार सुनइयां नइये इहां मितान,
मिटाथस तय मनखे मन के भुख अऊ पियास,
पर इ मन करा ले नइये हे एको आस,
जे दिन तय छोड़े अपन करनी,
ते दिन ये मन के हो जाही मरनी,
पर तय नइ छोड़स अपन धरम ल
कइसनो करत रहे दुनिया अपन करम ल,
किसान रे किसान,
तोर पिरा हरइया कोनो नइ ए इहां मितान।
तय भुइंया के भगवान तोला जोहार हावय मितान।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ग्राम-देवरी (पंधी), जिला-बिलासपुर
छत्तीसगढ़

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